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Aug 4

ग़ज़ल

ये तमन्ना थी देखकर तुझको आऊँ मैं भी कभी नज़र तुझको थोड़ी मेहनत के बाद ही मिलना ढूँढ तो लूँ इधर उधर तुझको दिल के हर गोशे* से सदा आयी, ‘याद करता है तेरा घर तुझको!’ (*कोने) कौन किसको बनाता आया है तू बशर** को या फिर बशर तुझको (**इंसान) आइना ही इक आसरा है अब और तुझ सा मिले किधर तुझको क़त्ल ही इक शफ़ा है क्या तेरी कौन कहता है चारगर तुझको अनन्त ‘फ़ानी’ A lovely musical rendition of this ghazal by my very talented friend, Achintya, can be found here.

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ग़ज़ल
ग़ज़ल

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Aug 4

ग़ज़ल

तेरे ‘कुन’ का तो पैंतरा है पुराना नये मौजज़े माँगता है ज़माना छुपा है जो हमसे, पता है ना उसको मुहब्बत में है जुर्म कुछ भी छुपाना ज़ियादा या कम से किसे कोई मतलब अहम है अगर अक़्ल हो तो दिखाना असरदार तरकश में ही रहके हैं कुछ नहीं लाज़मी तीर सारे चलाना हम ऐसे मुसाफ़िर तो बस चल दिये हैं है रस्ता फ़ुलां और मंज़िल फ़लाना अजूबा सा कुछ अंत में होगा, ‘फ़ानी’ वगरना तो क्या ही था सारा फ़साना अनन्त ‘फ़ानी’

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ग़ज़ल
ग़ज़ल

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Aug 3

ग़ज़ल

कर रहे हैं सिसकने की आवाज़ आ रही है चहकने की आवाज़ ख़ामशी का फ़रेब देती रही हल्क़ में बात अटकने की आवाज़ (हल्क़- गला) कैसे कर पा रहे हैं कुछ पंछी क़ैद में भी चहकने की आवाज़ काम लोरी का कर गई आख़िर रात भर छत टपकने की आवाज़ कोई राम आयें तो सुनें, ‘फ़ानी’ इस शिला में धड़कने की आवाज़ अनन्त ‘फ़ानी’

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ग़ज़ल
ग़ज़ल

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Jul 27

ग़ज़ल

कब तलक रक्खेगा यूँ बच्चा बनाकर हमको जीना है हमको भी तो यार! बड़ा कर हमको सामने लाता है इक ख़ाक का पर्दा हर बार आइना रखता है हमसे ही छुपाकर हमको रंग उतर जाए तो दीवार से लिपटा न रहे लेके जाए कोई बरसात बहाकर हमको उम्र भर रोते रहे वक़्त की तंगी पे भी हम इक अजब चैन भी था वक़्त गवाकर हमको छोड़ा तन्हाई ही ने जब न हमें तन्हा तो फिर क्या मिले दुनिया से उम्मीद लगाकर हमको कोई दम-वम नहीं है बात में उसकी, ‘फ़ानी’ वो डराता है फ़क़त शोर मचाकर हमको

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ग़ज़ल
ग़ज़ल

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Jul 27

ग़ज़ल

ग़ज़ल या राइगाँ ये सफ़र है या राइगाँ हूँ मैं कि चलके भी यही सोचूँ चला कहाँ हूँ मैं उलझ रहा हूँ बदन रूह के मुआमले में कोई बता दे मकीं हूँ या फिर मकाँ हूँ मैं बड़े मज़े से उसे देखता है आईना जो देखकर उसे सोचे कि हाँ, यहाँ हूँ मैं चटख़ के टूट गया है वो आइना घर का जो देता था ये दिलासा मुझे कि हाँ, हूँ मैं लिखा गया हूँ मैं यूँ ख़ुद के ही फ़साने में कि ख़ुद ही खोजता रह जाऊँगा कहाँ हूँ मैं पता नहीं कि यहाँ जल गया जो, क्या था वो पता नहीं मुझे किस चीज़ का धुआँ हूँ मैं

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ग़ज़ल
ग़ज़ल

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Jul 25

ग़ज़ल

छूट ज़ियादा देने से दिल टूटेगा ऐरे-ग़ैरों को ना दे दिल, टूटेगा रिश्तों को दिल सौंपने में ये ख़तरा है रिश्ता टूटे ना टूटे, दिल टूटेगा पत्थर है ये, पंछी नहीं- बोलो इसको उड़ने दोगे तो गिरके दिल टूटेगा मरने का डर किसको है, मर जाएँगे डर है मरने से पहले दिल टूटेगा इश्क़ समझके कुछ ना कुछ करते रहना कुछ ना कुछ करते करते दिल टूटेगा

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ग़ज़ल
ग़ज़ल

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Jul 25

Haiku

Everyday the sea Swallows, just fully swallows An exhausted sun

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Haiku
Haiku

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Jul 21

चयन

चयन करने की क़ुव्वत रखता हूँ, ये सोचता हूँ मैं तो इस क़ुव्वत को क्यों ना आज़मा लूँ देख लूँ ख़ुद ही ये क्षमता क्या नज़र आती है जीवन में कहीं मुझको “पहनना क्या है मुझको आज?” जो पूछूँ मैं ख़ुद से तो जवाब आए, “फ़ुलां चीज़ और फ़ुलां का जोड़ा पहना…

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चयन
चयन

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Jun 19

“पितृ देवो भव”

ये पहली बार है जब इस दिवस के मेरे जीवन में म’आनी हैं। पिता ख़ुद हूँ जो अब मैं किंतु क्या कुछ और भी हूँ? “पितृ देवो भव” का मतलब है पिता इक देवता है पर अचानक कल तक इंसाँ था जो अब वो देवता कैसे हुआ? क्या दिव्यता उसमें …

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“पितृ देवो भव”
“पितृ देवो भव”

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Oct 25, 2022

झूठ

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झूठ
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